//गुलज़ार सिलसिला//
"शुक्रगुज़ार हूँ ,तेरे दिल में दाख़िला मिला है,
रेज़ा रेज़ा से अरमानों को मिटाता मुब्तिला मिला है।
आरज़ू फक़्त इतनी रही कभी कोई समझे,
देख इन मुसकुराहटों से फूल खिला मिला है।
खा गई हर ग़ुबार जो दबा हुआ था सालों से,
खुशफ़हमियों के बीच तुमसे काफ़िला मिला है।
अब कैसे बताऊँ तुम कौन हो मेरे मेहरबान,
शायद ख़ुदा से सच्ची इबादत का सिला मिला है।
हक़ जताकर जो कहते हो मोहसिना हूँ तुम्हारी,
इब्तदा-ए-इश़्क में गायब होता इब्तिला मिला है।
ख़ामोशी से भर लेते हो अपने आग़ोश में जानां,
जख़्म पर मेरे मरहम-ए-मिनार का किला मिला है।
चैन हो ,सुकूँ हो ,अब कह दो तो ऐलान करे "सैयाही",
ग़ुलाब के साँचे सा गुलज़ार सिलसिला मिला है।।
© ©Saiyaahii🌞✒
(** मुब्तिला- ग्रस्त
** इब्तिला- दुःख निगलना)
रेज़ा रेज़ा से अरमानों को मिटाता मुब्तिला मिला है।
आरज़ू फक़्त इतनी रही कभी कोई समझे,
देख इन मुसकुराहटों से फूल खिला मिला है।
खा गई हर ग़ुबार जो दबा हुआ था सालों से,
खुशफ़हमियों के बीच तुमसे काफ़िला मिला है।
अब कैसे बताऊँ तुम कौन हो मेरे मेहरबान,
शायद ख़ुदा से सच्ची इबादत का सिला मिला है।
हक़ जताकर जो कहते हो मोहसिना हूँ तुम्हारी,
इब्तदा-ए-इश़्क में गायब होता इब्तिला मिला है।
ख़ामोशी से भर लेते हो अपने आग़ोश में जानां,
जख़्म पर मेरे मरहम-ए-मिनार का किला मिला है।
चैन हो ,सुकूँ हो ,अब कह दो तो ऐलान करे "सैयाही",
ग़ुलाब के साँचे सा गुलज़ार सिलसिला मिला है।।
© ©Saiyaahii🌞✒
(** मुब्तिला- ग्रस्त
** इब्तिला- दुःख निगलना)
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