//गुलज़ार सिलसिला//
"शुक्रगुज़ार हूँ ,तेरे दिल में दाख़िला मिला है,
रेज़ा रेज़ा से अरमानों को मिटाता मुब्तिला मिला है।
आरज़ू फक़्त इतनी रही कभी कोई समझे,
देख इन मुसकुराहटों से फूल खिला मिला है।
खा गई हर ग़ुबार जो दबा हुआ था सालों से,
खुशफ़हमियों के बीच तुमसे काफ़िला मिला है।
अब...
रेज़ा रेज़ा से अरमानों को मिटाता मुब्तिला मिला है।
आरज़ू फक़्त इतनी रही कभी कोई समझे,
देख इन मुसकुराहटों से फूल खिला मिला है।
खा गई हर ग़ुबार जो दबा हुआ था सालों से,
खुशफ़हमियों के बीच तुमसे काफ़िला मिला है।
अब...