...

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मैं और जिंदगी
अंजान था
जिंदगी के दांव पेंचो से
हर बार कि तरह
इस बार भी
कुछ आगे चला ही था

कि थोड़ी ही दूर में
भ्रम टूट गया जैसे
एकतरफा कोशिशों से
कहां भला होता है किसीका

मैं अपने हिस्से की ईमानदारी
निभाता चला
और जिंदगी
अपनी नियत के हिसाब से
मुझे हर मोड़ पर
धोखे देती चली..






© अपेक्षा