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एक नया साल
एक नया साल

कल ही की बात है जब नया साल आया था,
भरी रौशनी और फूलो से पुरज़ोर इस्तकबाल किया था,
नयी उम्मीद और नयी ख्वाईशो की फेरिस्त बनाई थी,
उम्मीद ही टूट जाएगी किसी को कोई खबर ही नहीं थी !

शुरू में तो कुछ चमकते दिए की लो सी छाई थी,
सितारे तो दूर है मगर रौशनी फिर भी हमपर नाज़िल थी,
कुछ कर गुज़ारने की लोगो ने कसमें भी खाई थी,
सपने इस तरह बिखरेंगे किसी को उम्मीद नहीं थी!

कुछ इस तरह से ग़ज़ब आदम जाद पे बरपेगा,
पास होकर भी बंदा अपनों को बेगाना...