...

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भरम
दूर से देखो तो,
सब धरम, भरम नज़र आते हैं !
कहीं पे जिहाद नज़र आते हैं ,
तो कहीं पे करम नज़र आते हैं !
तासीर समझ में नहीं आती इसकी ,
फ़िर भी सभी शमशीर उठाए जाते हैं!
चिरायंध आती है कहीं से
अस्थि-मज्जा के जलने की ;
तो दुर्गंध आती है कहीं से
किसी के शव के सड़ने की !
बिगड़े-बिगड़े से हालात नज़र आते हैं ;
घ़ायल सभी के जज्बात नज़र आते हैं !
कौन कहता है-
दुनिया टिकी है गाय के सींघों पर ?
यारों हमको तो हर उपद्रवी भीड़ के
इक पूंछ और दो सींग नज़र आते हैं !
यारों हमको तो हर उपद्रवी भीड़ के
इक पूंछ और दो सींग नज़र आते हैं !!
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© Brijendra Kanojia