...

6 views

वक़्त की कारस्तानी
सोचती हूँ बयाँ करूँ मैं, उस शाम की कहानी
जिसके हर लम्हे में बस, तुम ही तुम समाऐ थे

मेरे हाथों में जब तुमने, अपना हाथ थमाया था
उस दिन आते ही तुमने, मुझको गले लगाया था

मेरे माथे पर तब तुमने, होंठों को अपने सजाया था
मौसम की थी शैतानी, जो इतने करीब तू आया था

ऐ काश! फिर कुछ ऐसा हो, वक़्त वही फिर लौट आये
ये वक़्त की कारस्तानी थी, जो तुमको दूर कराया था
© ऊषा 'रिमझिम'