क्या बन गई ज़िंदगी शायरी में
कुछ होता हैं जो तरबियत में
आसमानों की उन सूफ़ियत में
किन्हीं किरदारों के आसपास
या ख़ुद ही की कुछ कमलियत में
कुछ यूं बन गई हैं ये ज़िंदगी मेरी
कुछ अल्फाज़ है जो शायरी हैं
कुछ सुकून सा जो दे रही है
वो हक़ीक़त में मिलता क्यों नहीं
कि लगता हैं हम को जीना नहीं आ रहा
या फिर इन शायरों को लिखना नहीं आ रहा...
आसमानों की उन सूफ़ियत में
किन्हीं किरदारों के आसपास
या ख़ुद ही की कुछ कमलियत में
कुछ यूं बन गई हैं ये ज़िंदगी मेरी
कुछ अल्फाज़ है जो शायरी हैं
कुछ सुकून सा जो दे रही है
वो हक़ीक़त में मिलता क्यों नहीं
कि लगता हैं हम को जीना नहीं आ रहा
या फिर इन शायरों को लिखना नहीं आ रहा...