...

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"ये गुमशुदगी....!!!"
गुमशुदा रास्तों पर चले थे हमकदम बन कर
हाथों को हथेलियों संग लपेट कर
बुने थे कई सपने सारे
दिया था.... भरोसा
न छोड़ोगे कभी साथ....हमारा
आज "दीप्तमान" है...फ़लक पूरा
पर "आकाश" कहीं गुमशुदा सा है
कल्पना से परे है न हर बात मेरी
पर कुछ शब्दों के मायने...हमेशा अनसुलझे ही रहते हैं
जो चकराते हैं... कुछ सुलझे हुए दिमागी मरीजों को भी ।।।
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