...

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एक थी वो किरण!
#WritcoPoemPrompt44
Think about a time in your life when you couldn’t make a decision, and write a poem based on it.

विकराल समुद्र की धारा में
अविरल चंचल किरण सूर्य की.....
इठलाती बल खाती,कह रहीं हो मानों जैसे,

सागर की बाहों में सो जाने दो, क्षीर सागर को गले लगाकर,
चमकता चुंबन दे रही हो!

अपितु मंजूर नही था! सूर्य को.
लाल गुस्से सा धधक रहा हो,
पल पल ढलता चला गया वो,

सिमटती रहीं वो किरण,नहीं पा सकी प्रेमालिंगन!
सागर ने भी देर कर दी,निशांत निर्उतर खड़ा रहा वो!
अपना निर्णय नहीं लिया वो.........

चंचल चमकती किरण सूर्य की
काली रात के आगोश में ,
जाने कहाँ गुम हो गई वो!!!
✍ranu

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