श्रृंगार
श्रृंगार...
चंद अल्फ़ाज़ लिखना आसान है शायद !
कहने को तो यह स्त्री का अलंकार है,
और यही खिंची गयी
कुछ रिवायतों की लकीर है शायद !
मुमकिन है तोड़ना ...
हाँ, मुमकिन है तोड़ना ...
परम्पराओं के नाम पर
झूठी रस्मों को !
लेकिन, ललाट पर टीका ... याद दिलाये
साँसों से जुड़ी उन सारी कसमों को !
चमकती नथ अश़्कों को पी जाती है,
और हर हाल जैसे हँसना सिखाती है !
कानों के झुमके ......
चंद अल्फ़ाज़ लिखना आसान है शायद !
कहने को तो यह स्त्री का अलंकार है,
और यही खिंची गयी
कुछ रिवायतों की लकीर है शायद !
मुमकिन है तोड़ना ...
हाँ, मुमकिन है तोड़ना ...
परम्पराओं के नाम पर
झूठी रस्मों को !
लेकिन, ललाट पर टीका ... याद दिलाये
साँसों से जुड़ी उन सारी कसमों को !
चमकती नथ अश़्कों को पी जाती है,
और हर हाल जैसे हँसना सिखाती है !
कानों के झुमके ......