...

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उड़ता हुआ पंछी ...
उड़ते हुए पंछी को अभी गुमान है।
उसकी उड़ान के लिए
अभी बचा ये आसमान है।
उसके पंखों पर उसे इतना अभिमान है,
जैसे वो उड़ता हुआ विमान है।
उसकी वाणी में मधुरता है इतनी
जैसे समंदर का वो गान है।
सिर्फ बेजुबान न कहना उसे,
उसमें भी छिपी एक मौन दास्तां है।
ए इंसान इन्हें अपनी साजिशों में शामिल न कर,
उड़ने दे उन्हें बेफिक्र।
सिर्फ तेरा या मेरा ही नहीं है ये जहान,
उसके भी हक की ये जमीं है,
उसके भी हक का है ये आसमान।
उनकी उड़ान का नहीं कोई परवान।
निर्बाध हो उनकी उड़ान।
पंछी उड़ रहे है, इसी घर से उस घर
लेकर आज़ादी का फरमान।
✍️ मनीषा मीना