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सुनो सहेली !
सुनो सहेली, तुम स्याही और पन्नो की कोरी शहज़ादी हो।
मेरी उल्झी कहानी को बुनती हुई, कल्पना की दीवानी हो।
मेरे जीवन अनुभव को भीतर-ही-भीतर સમેટી हुई, हमसफ़र हो, जीवन-सारनी हो।
प्रतिकूलता मे आशा की किरण और संजीवनी की वरदाती हो।
सुनती हो पर सुनाती नहीं हो, क्या मुझसे नाराज़ हो? विचलित हो? या बस चिन्तित हो ?
सुनो सहेली, तुम पावन गंगा हो! बहती सरिता, तरल अस्मिता हो।
हर घर की लक्ष्मी हो, तुम हर घर की सरस्वती हो।
तुम मेरी संगिनी हो,
मेरी सहेली हो!
© Somanshi
मेरी उल्झी कहानी को बुनती हुई, कल्पना की दीवानी हो।
मेरे जीवन अनुभव को भीतर-ही-भीतर સમેટી हुई, हमसफ़र हो, जीवन-सारनी हो।
प्रतिकूलता मे आशा की किरण और संजीवनी की वरदाती हो।
सुनती हो पर सुनाती नहीं हो, क्या मुझसे नाराज़ हो? विचलित हो? या बस चिन्तित हो ?
सुनो सहेली, तुम पावन गंगा हो! बहती सरिता, तरल अस्मिता हो।
हर घर की लक्ष्मी हो, तुम हर घर की सरस्वती हो।
तुम मेरी संगिनी हो,
मेरी सहेली हो!
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