मां की गोंद मे कुछ दिन और सोने थे ?
कविता-
(शीर्षक - माँ की गोद में कुछ दिन और सोने थे)
घर का आँगन सूना हुआ, माँ कि गोद सूने है ।
माँ के लाडले बच्चे बडे़ हुए, घर से कहीं दूर है ।
जिस पर माँ की ममता, पिता का छाया हुआ करता था ।
बेटा माँ -पिता का राजकुमार, बेटी राजकुमारी हुआ करती थी ।
दिन थे बचपन के, पर अपनो का प्यारा था ।
आंगन था स्वर्ग जैसा, अपना शासन हुआ करता था ।
माँ लोरी सुनाया करती, पिता कहानियां सुनाया करते थे ।
जब कभी बिस्तर गीली हो जाती ,माँ सूखे मे सुलाया करतीं ।
खुद गीले मे सो जाती , और हमे आँचल में छुपाया करती ।
जब कभी रोया करते , पिताजी खिलौने लाया करते ।
कितने कष्ट दिये उन्हें, फिर भी वे हमेशा मुस्काराया करती ।
क्यूँ...
(शीर्षक - माँ की गोद में कुछ दिन और सोने थे)
घर का आँगन सूना हुआ, माँ कि गोद सूने है ।
माँ के लाडले बच्चे बडे़ हुए, घर से कहीं दूर है ।
जिस पर माँ की ममता, पिता का छाया हुआ करता था ।
बेटा माँ -पिता का राजकुमार, बेटी राजकुमारी हुआ करती थी ।
दिन थे बचपन के, पर अपनो का प्यारा था ।
आंगन था स्वर्ग जैसा, अपना शासन हुआ करता था ।
माँ लोरी सुनाया करती, पिता कहानियां सुनाया करते थे ।
जब कभी बिस्तर गीली हो जाती ,माँ सूखे मे सुलाया करतीं ।
खुद गीले मे सो जाती , और हमे आँचल में छुपाया करती ।
जब कभी रोया करते , पिताजी खिलौने लाया करते ।
कितने कष्ट दिये उन्हें, फिर भी वे हमेशा मुस्काराया करती ।
क्यूँ...