...

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यह निगाहें
यह निगाहें यह "बाहें"
यह मनचले लब अधखिले,
प्रेम रस मेें डूबी साँसे मिरी
हर पल ढूँढती पनाहे तिरी!!

तू ही जुस्तजू, तू ही आरज़ू मिरी
तू एहसासों की कश्ती का किनारा
मैं दिल हारा, जग हारा, सब हारा
तुम बिन सूझे ना यूँ कोई किनारा!!

थाम कर हाथ, हवा सा हो साथ
सफ़र तन्हा ना ख़तम हो मेरा यूँ
सींच दे प्रेम की बादली बनकर
खिला दे सुमन मन आँगन मेें..!!
© कृष्णा'प्रेम'