कैसी उलझन है ये।
मन तो बहुत था की रोक लूं तुम्हें
पर बस यह सोचकर रुक गई
क्या तुम्हारा मन था रुकने का
सवाल तो बहुत थे क्या मैं रोकूंगी तो तुम रुकोगे
आखिर गलती क्या थी मैं उसे सुधारने को तैयार हूं पर दिल कहता है क्या हर पल तेरा साथ देना भी मेरी गलती थी, क्या बस रात भर तुझ से बात करने के लिए उठे रहना जी मेरी गलती थी
बोलना तो बहुत कुछ था पर रोक लिया मैंने खुद को की क्यों पीछे जा रही है दिल तो पागल है कुछ भी बोलता है
क्या गलतफहमी थी वह की तू भी मुझसे मोहब्बत करता था
चाहता तो दिल बहुत है कि उसे गलतफहमी में ही जी लूं जानता तो यह पल भी है कि दर्द तो बहुत होगा पर क्या करूं दिल पागल तो बहुत है
उसे दर्द में भी खुशी का एहसास करना जानता है जानता है कि शायद हम बने...
पर बस यह सोचकर रुक गई
क्या तुम्हारा मन था रुकने का
सवाल तो बहुत थे क्या मैं रोकूंगी तो तुम रुकोगे
आखिर गलती क्या थी मैं उसे सुधारने को तैयार हूं पर दिल कहता है क्या हर पल तेरा साथ देना भी मेरी गलती थी, क्या बस रात भर तुझ से बात करने के लिए उठे रहना जी मेरी गलती थी
बोलना तो बहुत कुछ था पर रोक लिया मैंने खुद को की क्यों पीछे जा रही है दिल तो पागल है कुछ भी बोलता है
क्या गलतफहमी थी वह की तू भी मुझसे मोहब्बत करता था
चाहता तो दिल बहुत है कि उसे गलतफहमी में ही जी लूं जानता तो यह पल भी है कि दर्द तो बहुत होगा पर क्या करूं दिल पागल तो बहुत है
उसे दर्द में भी खुशी का एहसास करना जानता है जानता है कि शायद हम बने...