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किताबों के ऊहापोह में घिरा बचपन
किताबों के ऊहापोह में घिरा बचपन से छुटकारा
दिला दो,सपनों के आँगन में उड़ना चाहता है!
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कोई स्कूल की घंटी बजा दे,
ये बच्चा मुस्कुराना चाहता है!
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कंधे से किताबों की बोझ हटा दो,
बचपन भी चैन की सांस लेना चाहता है!
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ऑनलाइन क्लास की विविधा को हटा दो,
किताबों की भाषा को समझना चाहता है!
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मोबाइल की दुनियाँ से मुझे निज़ात दिला दो,
फुर्सत में मित्रों के साथ खेलना चाहता है!
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दिमाग में गणित का सूत्र याद होता नहीं,
ये मन की गीत गुनगुनाना चाहता है!
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किताबों में संचित ज्ञान को सरलता से समझा दे,
ये बच्चा भी हर शास्त्र को पढ़ना चाहता है!
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लाखों की भीड़ से बाहर निकाल दे,
मेहनत कर मंजिल को पाना चाहता है!
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किताबों की दुनिया को रंगीन बना दे,
इंद्रधनुषी रंगों में रंग ना चाहता है!
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असफलता से रिश्ता जोड़ दे,
सीख लेकर आगे बढ़ना चाहता है!
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खुद के ऊपर विश्वास, धैर्य को बढ़ा दे,
ऊंचे आसमान तले मंजिल को चुमना चाहता है!
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मन में चल रही दुविधा को पार लगा दे,
मेरा बचपन खुली हवा में साँस लेना चाहता है!

_Dolly Prasad ✍

© Paswan@girl