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बेटियों, सबल बनो
सोच के दायरे में सीमित समाज से किंचित ना डरो बेटियों, सबल बनो और आगे बढ़ो

जो पाने की आकांक्षा हो, हाथ बढ़ा ले लो
जी भर के जियो, मन भर के खेलो
आयेॅगी अढचने, विचलित ना होना
लगेंगी तोहमतें व्यथित ना होना

लानी है क्राॅति तो आप ही बदलाव बनो
बेटियों, सबल बनो और आगे बढ़ो

जीवन तुम्हारा तो फैसले भी तुम्हारे
मत मांगो सहानुभूति, मत ढूंढो सहारे
जिसमें सूरज की तपन है वो रोशनी हो तुम
जिसमें पाने की लगन है वो शक्ति हो तुम

आसमान हथेली में होगा, गर संकल्प करो
बेटियों, सबल बनो और आगे बढ़ो

चित्रा बिष्ट



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