...

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चार जून की बात हैउसमें भी कुछ घात है
#जून
चार जून की बात है
उसमें भी कुछ घात है
कौन बनेगा समय का साहु
वादों की बस बात है
आ बैठ कुछ गुफ़्तगू कर
फिर बना कोई घात
रस्ते पे मिलेगा या खोलेगा अपना द्वार
एक अरसे से हुं तनहा
बना न कोई बात
चार जून की बात है
उसमें भी कुछ घात है
दो जून की रोटी साथ ही थी
अब उसमे न कोई बात
सब्र अब टूटने वाला है
दिखा न फिर वो रुवाब
चार जून की बात है
उसमें भी कुछ घात है।
© Ambuj Pathak