...

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एक मुसाफिर
जिसके आने की वो राहें तकती है,
तिरछी निगाहों से जिसे वो देखती है,
जिससे बात करने के बहाने वो बुनती है,
बेखबर है वो, एक मुसाफिर है,
जिसमे वो अपना ठिकना ढूंढ़ती है।


बेखबर है वो,
मुसाफिर का सफर ही ठिकाना होता है,
सफर ही मंजिल होती है।


बेखबर है वो,
मुसाफिर सफर में लोगों का दिल जरूर बहलाता है,
दिल जीतने का उसका कोई इरादा नहीं होता है।


बेखबर है वो,
मुसाफिर मुहब्बत बस अपने सफर से करता है।


बेखबर है वो,
मुसाफिर ना वफा ढूंढता है,
ना बेवफा ढूंढता है,
सफर में खोया वो कुछ इस कदर रहता है,
बस लोगों से वो अपना ही पता पूछता है।
© mukeshyasdiary.blogspot.com