जिंदगी के सवालो में उलझी
ज़िन्दगी के सवालो में उलझी नारी,
खुद के खुशियों को समर्पण कर देती!
कभी समाज़ की बनाई रूढ़ि सोच के,
आगे अपने सपनों का गला घोट देती!
परिवार के मान, मर्यादा,प्रतिष्ठा के लिए
हर अपशब्द को विष समझ पी लेती!
चार दीवारी में क़ैद रहकर कर अपने हर
अरमानो का घोट जिन्दा ही मार देती!
मन में हज़ार दर्द को दफनाए न जाने,
क्यों लबों के मुस्कान अर्पण कर देती!
हर ग़म दलीलों को सह कर भी ये नारी,
इनके दुःखो का पल में तर्पण कर देती!
© Paswan@girl
खुद के खुशियों को समर्पण कर देती!
कभी समाज़ की बनाई रूढ़ि सोच के,
आगे अपने सपनों का गला घोट देती!
परिवार के मान, मर्यादा,प्रतिष्ठा के लिए
हर अपशब्द को विष समझ पी लेती!
चार दीवारी में क़ैद रहकर कर अपने हर
अरमानो का घोट जिन्दा ही मार देती!
मन में हज़ार दर्द को दफनाए न जाने,
क्यों लबों के मुस्कान अर्पण कर देती!
हर ग़म दलीलों को सह कर भी ये नारी,
इनके दुःखो का पल में तर्पण कर देती!
© Paswan@girl
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