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ज़िंदगी इक सराब
वही रात है वही ख़्वाब है वही चांद है वही चांदनी
वही मौसमों की बहार है पर नहीं रही है वो दीदनी

वही शाम है वही है सहर वही वक्त है जो ठहर गया
न तो इश्क़ में वो ख़ुमार अब न ही हुस्न अब्र-ए-बहमनी

वही हाल है वही चाल है कोई फ़र्क अब भी पड़ा नहीं
हमें दोस्ती का गुमान था पर मिली बदल में है दुश्मनी

कभी ख़्वाब में भी दिखे अगर तो लगे महज़ इक सराब वो ...