भाई.!
तू कहाँ है कैसा है बता दे न भाई
फिर इक बार अपनी सदा सुना दे न भाई
माँ तरसती है देखने को सूरत बेटे की
उसे अपना चाँद-सा चेहरा दिखा दे न भाई
बस गया है नस-नस में काली रातों का ज़हर
तू आकर खुशियों का सूरज ख़िला दे न भाई
अब तो बरगश्ता है हमको ज़माने की हवा
इक बार तो अपने एहसासों की हवा दे न भाई
वो हलचल शरारत वो...
फिर इक बार अपनी सदा सुना दे न भाई
माँ तरसती है देखने को सूरत बेटे की
उसे अपना चाँद-सा चेहरा दिखा दे न भाई
बस गया है नस-नस में काली रातों का ज़हर
तू आकर खुशियों का सूरज ख़िला दे न भाई
अब तो बरगश्ता है हमको ज़माने की हवा
इक बार तो अपने एहसासों की हवा दे न भाई
वो हलचल शरारत वो...