मज़दूर हैं साहेब
मज़दूर हैं साहेब,
तभी तो मजबूर हैं साहेब।
अपनों के लिए
अपनों से ही दूर हैं,साहेब।
मज़दूर हैं साहेब,
तभी तो मजबूर हैं साहेब।
दो वक़्त की रोटी भी दुश्वार है,
ज़िन्दगी में तकलीफें भी हज़ार है,
फिर भी...
तभी तो मजबूर हैं साहेब।
अपनों के लिए
अपनों से ही दूर हैं,साहेब।
मज़दूर हैं साहेब,
तभी तो मजबूर हैं साहेब।
दो वक़्त की रोटी भी दुश्वार है,
ज़िन्दगी में तकलीफें भी हज़ार है,
फिर भी...