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नकाब औढ़ कर,,,
ज़ख्म दिखाए जिसे अपना सोचकर
सरे आम किए उसी ने सभी नोचकर
इस बार एक और भी दीवार गिर गई
बैठे थे जहां खुद को महफूज़ सोचकर
कौन निभाता यहां साथ सदा के लिए
जाना है गर तो जाओ तुम भी छोड़कर
रुक रुक के देख रहे हैं लोग मेरी तरफ
जाने क्या ले आए हैं इसबार खोजकर
क्यों भूल जाती है,,,सीमा तू ये हरबार
यहां तो मिलते हैं लोग नकाब ओढ़कर
© बूंदें
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