...

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आखिरी छोर तक
स्त्रियां,
कुछ भी जाया नही जाने देती.!
वह सहेजती है,
संभालती है,
ढकती है,
बांधती है,
उम्मीद के आखिरी छोर तक.!!
कभी तुरपाई कर के,
कभी टाका लगा के,
कभी धूप दिखा के,
कभी हवा झला के,
कभी छांटकर,
कभी बिनकर,
कभी तोड़कर,
कभी जोड़कर,
देखा होगा ना ????
अपने ही घर में उन्हें खाली डब्बे...