#सडक #धांधली
#सड़क
आधा सड़क सरकार का,
आधा सड़क निर्माणकार का;
आधा सड़क बेघर यार का,
आधा बचा खुचा मुसाफिर का ।
सडक से संवेदना हिन बन बैठे है लोग,
सडक का कारोबार से कर बैठे हैं संयोग ।
जब चाहा जहाँ चाहा जैसे भी चाहा
बपौती संपत्ति मान अड़चनें डाल देते।
म्युनिसिपल को हर पल ठेंगा दीखा देते
बहुत हुआ तो मुसाफिरों...
आधा सड़क सरकार का,
आधा सड़क निर्माणकार का;
आधा सड़क बेघर यार का,
आधा बचा खुचा मुसाफिर का ।
सडक से संवेदना हिन बन बैठे है लोग,
सडक का कारोबार से कर बैठे हैं संयोग ।
जब चाहा जहाँ चाहा जैसे भी चाहा
बपौती संपत्ति मान अड़चनें डाल देते।
म्युनिसिपल को हर पल ठेंगा दीखा देते
बहुत हुआ तो मुसाफिरों...