दक्ष की भूल, सती की आग
सती का दर्द, दक्ष का अभिमान,
एक पिता की गलती, बेटी का बलिदान।
जो रिश्ता था पवित्र, वो हुआ कलंकित,
अब सुन कहानी, शब्दों में चित्रित।
"पिता! क्यों बनाया मुझे शर्म का कारण,
तुम्हारे शब्दों ने जला दिया मेरा जीवन।
वो शिव हैं सृष्टि के आधार,
तुमने किया जिनका, अपमान बार-बार।
तुम्हारी सभा ने मेरी हंसी उड़ाई,
मेरे स्वाभिमान की लौ भी बुझाई।
क्या यही होता है, पिता का धर्म,
जो बेटी के प्रेम पर करे प्रहार बेरहम?"
"सती, मैं...
एक पिता की गलती, बेटी का बलिदान।
जो रिश्ता था पवित्र, वो हुआ कलंकित,
अब सुन कहानी, शब्दों में चित्रित।
"पिता! क्यों बनाया मुझे शर्म का कारण,
तुम्हारे शब्दों ने जला दिया मेरा जीवन।
वो शिव हैं सृष्टि के आधार,
तुमने किया जिनका, अपमान बार-बार।
तुम्हारी सभा ने मेरी हंसी उड़ाई,
मेरे स्वाभिमान की लौ भी बुझाई।
क्या यही होता है, पिता का धर्म,
जो बेटी के प्रेम पर करे प्रहार बेरहम?"
"सती, मैं...