...

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अपमान...
मैं गुज़रा हूँ उन रास्तों से जहां कितनो की उम्मीदें दफन है।
बीच दरिया में खड़ा हूँ मेरे सर पर उम्मीदों का कफन है ।
रोशनी से बाहर निकला तो अंधेरों ने चलना सिखाया।
इन्सानो का बदलता चेहरा अंधेरे ने दिखाया।
ज़माना तुम्हारे साथ नही तुम्हारी रोशनी से जलता है।
अंधेरों में जाओगे तो खुद परछाई रंग बदलता है।
संभाल लिया खुद को अपनो की गैर मौजूदगी में ।
सबका मतलब सामने आया कश्मकश की ज़िंदगी मे।
रखकर कंधो पर बोझ कड़ी धूप में बेफिक्र चलता हूँ।
ज़माना कैसे जलाएगा मैं कठिन परिश्रम में रोज जलता हूँ।
रुसवा होकर ज़िन्दगी से अपनो पर सवाल उठाया।
जुदा हो गया हर शख्स सबने अपना दामन बचाया।
रेखाएं मिट गई सारी हथेली से हाथ छूटने लगे रंगोली से।
ज़ख़्मी हो गया वो शख्स जो नही डरता था दभोली से ।
लग गया जो दाग कोरे कागज पर अपमान बन गया।
शौक नही था फिर भी मैं अपनो का मेहमान बन गया।
© Roshanmishra_Official