...

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एक लड़की
वोह जो लड़की बिन मां के पल रही है
कितने ही सितम आपने बदन पर सेह रही है
मां के बाद तो वोह जैसे बचपन भूल गई
घर की जिमेवारी में कहीं गुम गई
कितना कुछ सोचा था इसने ओर क्या हुए
क्या बताऊं कोन कोन सा सपना उसका चूर चूर हुआ

जो मर्ज़ी से उठ कर बिस्तर से रोटी खाने की उम्र थी
वोह उम्र उस ने रिसोई में निकाली है
हां कर सकती थी वोह भी आपनी मन मर्ज़ी
लेकिन मासूम उम्र में उसने सबकी ज़िमेवारी संभाली है

मैं तो सिर्फ उसके गम का एक कण ही ब्यान कर रहा हूं
वोह तो एक पहेली है जो समझने वाली है
मेरा दोस्त