...

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“ये लत इश्क की, हमें क्यूं पड़ी??"
झुंझलाहट है मेरे, रोम-रोम में भरी,
ए-खुदा, ये लत, इश्क कि, हमें क्यों पड़ी ??

हमें रहना था उदासीन, मोहब्बत की नजरों से,
है जिंदगी का खोट, जिसे मरने की पड़ी...

बहला लिए गए जिस्म, नए लिबास दिखाकर,
बहले कैसे ये रूह, जो है जिद पे अड़ी ??

जो छिल रहे हैं हाथ, न जाने तेरे कहां-कहां ??
लगता है मर्जी, शामिल है तेरी...

इल्तिज़ा है तुझसे, रोक दे ये गलीज़ समा,
क्या गुनेहगार है तू कहीं, जो बिस्तर पर है, यूं पड़ी ??

है जिद, उजड़ने की, कगार पे,
फकत आंख ही, खुली रहीं...

सब बंद हो गई, खिड़कियां,
क्यूं कपिल की नहीं, सुनी गई ??....
© #Kapilsaini