![...](https://api.writco.in/assets/images/post/default/story-poem/normal/mythology.webp)
9 views
वक़्त लगता है
चलते-चलते गर ठोकर लग जाये,
तो फिर चलने में वक़्त लगता है !
टूटा हो जिसपर ग़मों का पहाड़,
मुमकिन है उसे सम्हालने में वक़्त लगता है !!
चलते-चलते गर ठोकर लग जाये,
तो फिर चलने में वक़्त लगता है !
मानता हूँ, वक़्त भर देता है, हर ज़ख्म को
लेकिन ज़ख्मों को भरने में वक़्त लगता है !!
चलते-चलते गर ठोकर लग जाये,
तो फिर चलने में वक़्त लगता है !
© mereadhurekhwab
तो फिर चलने में वक़्त लगता है !
टूटा हो जिसपर ग़मों का पहाड़,
मुमकिन है उसे सम्हालने में वक़्त लगता है !!
चलते-चलते गर ठोकर लग जाये,
तो फिर चलने में वक़्त लगता है !
मानता हूँ, वक़्त भर देता है, हर ज़ख्म को
लेकिन ज़ख्मों को भरने में वक़्त लगता है !!
चलते-चलते गर ठोकर लग जाये,
तो फिर चलने में वक़्त लगता है !
© mereadhurekhwab
Related Stories
25 Likes
3
Comments
25 Likes
3
Comments