...

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प्रेम रुप!
तुम पत्थर की वो लकीर हो,
जो इस हृदय से मिटाएं नहीं मिटती!

तुम अग्नि की वो लौ हो,
जो एक बार जली तो बुझाएं नहीं बुझती!

तुम बरसात की वो बूंद हो,
जिसके बरसने से ठंडक का एहसास होता है!

तुम सीप की वो मोती हो,
जो गहराइयों तक ढूंढ़ने पर ही मिल पाए!

तुम हीरे की वो चमक हो,
जो सदियों तरास कर बनाए गए हो!

तुम आस की वो किरन हो,
जिस तरह रेत में प्यासे को कुआं मिल जाए!

तुम प्रेम की वो मूरत हो,
जिसे पाकर जीवन संवर जाए!
© pritz