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जीवन है कविता
#WritcoPoetryDay

इक शहर है ढेर घर है ठिकाने का है ना पता
इक कवि है कल्पना है जीवन है कविता।

कह लो मन का हाल या
सियाही बोलो कलम की
नज़म न कहो इन्हे
ये ज़ख़्म पे हैं मरहम सी
दिनकर सी आए चमक
औ ज़िंदगी गुलज़ार हो
कविता को इस कदर
जब कवि से प्यार हो

एक रवि है आसमा है बहती है सरिता
इक कवि है कल्पना है जीवन है कविता।

अनुभव अनुभूति भावना से उपजे वो
शब्दों से अठखेलियां करके सजे फिर वो
उतरे जो स्याही में बढ़े कलम का रक्तचाप
नई दुल्हन जैसी फिर पन्नो पे उतरे वो
अधरों पे रख के फिर कवि जो चलाता है
पाषाण जीवित हो अंबर हिल जाता है

एक मैं हूं एक तुम हो क्या दूजा कहता
इक कवि है कल्पना है जीवन है कविता।।

- ध्रुव

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