ज्योत
ज्योत जग रही घूंघट में, संसार बना परछाई,
जिसकी जितनी सोच, उतनी ही समझ आई।
माया, तृष्णा का पुतला, चाहता कायाकल्प,
भगवान, संसार न मिले, बिना कोई संकल्प।
अविरल घटित हो पा रहा, नित नया...
जिसकी जितनी सोच, उतनी ही समझ आई।
माया, तृष्णा का पुतला, चाहता कायाकल्प,
भगवान, संसार न मिले, बिना कोई संकल्प।
अविरल घटित हो पा रहा, नित नया...