मज़बूरी
#मजबूरी
झूठ नहीं मजबूरी है,
तुम जानों क्या क्या ज़रूरी है;
लोग तो दिक्कार देते हैं उनको
बिना कोई सच जाने।
अब उनको कोन समझाए,
नंगे बदन की भी अपनी धुरी है।
कभी देखा है खुद को किसी जनाजे में,
कभी सोचा है क्या क्या होगा उस साजे में,
अपना हाल बिगड़ता देखना भी जरूरी है,
सपनो में खुद को मरता...
झूठ नहीं मजबूरी है,
तुम जानों क्या क्या ज़रूरी है;
लोग तो दिक्कार देते हैं उनको
बिना कोई सच जाने।
अब उनको कोन समझाए,
नंगे बदन की भी अपनी धुरी है।
कभी देखा है खुद को किसी जनाजे में,
कभी सोचा है क्या क्या होगा उस साजे में,
अपना हाल बिगड़ता देखना भी जरूरी है,
सपनो में खुद को मरता...