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#वीर अभिमन्यु 🙏
आज ले चलती हूं,तुम्हे अतीत की ऐसी गाथा सुनाने
जिसको सुन के ,भाव विभोर से चित्त भी लगे रूहाने
करके हान श्रृंगार मान का ,वो अभिव्यक्ति सुनाती हूं
चंद्र वंश के कुलदीपक का, शौर्य मैं आज गाती हूं

हस्तिनापुर में जन्मा बालक ,
जिनके मामा स्वयं सृष्टि के चालक
पिता परमवीर सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर,
माता जिनकी स्वयं सुभद्रा मनु कर
ऐसे लख्या ग्रह वीरों के,सुत को मैं वर्णाती हूं
चंद्र वंश के कुलदीपक का, शौर्य मैं आज गाती हूं

शिक्षा पाकर वासुदेव से , वो शिशु से शूरवीर बना
बलदाऊ के आशीर्वाद से,शिव गांडीव अर्जीन बना
अज्ञात वास के अंत समय में,उत्तरा से विवाह हुआ
दुर्योधन के भ्रीन स्वभाव से,युद्ध का आरंभ हुआ
जीवन के हर क्षण में ,मैं उसकी तल्लीनता बताती हूं
चंद्र वंश के कुलदीपक का, शौर्य मैं आज गाती हूं

पितृ समक्ष उपस्थित सुत ने ,हर संभव प्रयास किया
सोलह वर्ष के उस बालक ने , निर्भय हो युद्ध का  शंखनाद किया
देखके माधव ने साहस को,आजीवन यश का वरदान दिया
अर्जुन को देखके अनुपस्थित,गुरु द्रोण ने चक्रव्यूह का स्वांग रचा
जब हुआ देख के छित्र विचित्र, सकल पांडव गढ़
तब अखिल ज्वाला समान प्रज्वलित ,खड़ा हुआ एक अखेटक
गांडीव की टंकार  की ,आवाज उसकी सुनाती हूं
चंद्र वंश के कुलदीपक का, शौर्य मैं आज गाती हूं


मां के गर्भ से सीख चक्रव्यूह भेदन , तीक्ष्ण बुद्धि का प्रमाण दिया
कर आश्वस्त स्वजन को उसने ,प्रथम चरण को पार किया
प्रलय प्रशस्ति रौद्र महादेव सी, शत्रु गढ़ में आगे बढ़ा
देख पराक्रम अर्जुन पुत्र का ,कौरवों का रणथंभ कपा
सिंह सा उसका गान बाण,का वृतांत बताती हूं
चंद्र वंश के कुलदीपक का, शौर्य मैं आज गाती हूं

नाग वाशुकी सी फुंकार, उसकी इक इक स्वाश में
मानो ज्वाला फुफक रही थी ,स्वयं  शत्रु के  ह्रास में
ऐसा प्रबल सबल अति बालक ,देखा नहीं इतिहासों में
जिसको हराने  महावीरों को , आना पड़ा समूहों में
मस्तक के उसके अखिरभव को मैं आज दिखलाती हूं
चंद्र वंश के कुलदीपक का, शौर्य मैं आज गाती हूं

लक्ष्मण ,वृकध्रज,कृपाचार्य आदि को ,दिया परिचय अपने कौशल का
इस वीरता को रोकन को ,दुर्योधन ने घृणित कूट अब अपनाई
सह न सके तेज अग्र से जिसका ,पीछे से वार की नीति बनाई
जयद्रथ ने प्रहार किया पीठ पर ,लेकिन हार न मानी थी
रथ का पहिया लेकर भी ,दुश्मन की लंका लगानी थी
पराकाष्ठा के अंत में ,मैं तुमको ले जाती हूं
चंद्र वंश के कुलदीपक का, शौर्य मैं आज गाती हूं


देते देते परिचय शौर्य का ,लाल वीरगति शील हुआ
युद्ध के तेरहवें दिन को वो वीर ,पंचतंत्र में विलीन हुआ
मृत्यु निश्चित देखकर जिसने ,युद्ध से न इनकार किया
ऐसा सूरमा युगों युगों तक, जग में अमरदीप बना
करूणता के अंत में ,उसका दर्द दिखाती हूं
चंद्र वंश के कुलदीपक का, शौर्य मैं आज गाती हूं

धन्य हो अभिमन्यु जिसने भारतवर्ष को कृताज्ञ किया
अपने कर्म कर्तव्य धर्म से ,जीवन को सम्मान दिया
कर्ण ने हाथ जोड़कर उसको,नतमस्तक प्रणाम किया
यही समाप्त हुआ यह आलोक ,यही पर अब विश्राम हुआ
गर्व से ऊंचा मस्तक लेके ,सबको यही सुनाती हूं
चंद्र वंश के कुलदीपक का, शौर्य मैं आज गाती हूं

By-Radha...✒️

© it's radha ✒️