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राहगीर
#जंजीर
इन जंजीरों को तोड़कर
#रुख़ हवा का मोड़कर
चल रहे हैं देखो हम
अरमानों के पर खोलकर
#वजूद जो है अंदर मिरे
कई दिन हुए #राब्ता नहीं
कर लूं ख़ुद पर #यकीं मैं
किस #हिम्मत से तोलकर
सीने में एक #उलझन सी है
#ठहराव हो किस रास्ते
ना मालूम किस #मुकाम का
मैं #राहगीर दंग हूं सोचकर
© anamika
इन जंजीरों को तोड़कर
#रुख़ हवा का मोड़कर
चल रहे हैं देखो हम
अरमानों के पर खोलकर
#वजूद जो है अंदर मिरे
कई दिन हुए #राब्ता नहीं
कर लूं ख़ुद पर #यकीं मैं
किस #हिम्मत से तोलकर
सीने में एक #उलझन सी है
#ठहराव हो किस रास्ते
ना मालूम किस #मुकाम का
मैं #राहगीर दंग हूं सोचकर
© anamika
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