...

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ए हवा तेरा पता बता!
ए हवा तेरा पता बता,
बता भी दे इसमे तेरा क्या घटा?
सुबह मुझे अपने झोंको से उठाकर,
कहाँ चली जती है फरार होकर?
शाम को जब ढूँढने जती तुझे,
अपना एहसास तू दिलाती पतझड से मुझे।
ए हवा कुछ तो बोल!
तेरे पते का राज़ तो खोल।
बारिश से पहले आ जती है तू,
बालों को प्यार से सेह्लती है तू,
गर्मी में आराम दिलाती है तू,
सर्दी में ठंड दिलाती है तू,
ए हवा, अब तो बता!
कहाँ है तेरा पता?
*हावा*-
मैं तो हूँ हर जगह पे,
आकाश, धरती और पहाडों में,
न तू ढूँढ मेरा पता,
मेरे पते का नही है कोई रस्ता।