...

7 views

अजनबी मेहमान
आंधियों के सेहराव मैं, बाशिंदों के गांव मैं।
दरवेश गिर पड़ा था, चोट खाकर पाव मैं।

चला था इस एहतामात के साथ, शायद कोई थामेगा उसका हाथ।

शहर से ज़रा दूर था, आदत से मजबूर था।
इतने लोग उसे उठाते, की खुद आकर बैठ गया था छाव मैं।

वो ज़िद्दी भी था, और था अना परस्त भी।
ये पहली बार नही था, काफी बार गिर चुका था पहलें भी।

रफ्ता रफ्ता उसको एहसास हुआ, उसका मकसद ला इलाज हुआ।
उसका वक्त रायगाना रहा, अब वहा रुकने का कोई बहाना भी न रहा।

उसको अब वहा से चले जाना था, लेकिन कहा ये किसने बताना था।
वो तो अपनी धुन पर सवार था, शायद किसी पर उसको खुमार था।

कूचे कूचे से लोग देखने आए थे उसे,
उसका ऐसा अफसाना था।

ज़र्रा ज़र्रा ज़ैर हुआ, फिर वो मूर्छित होकर डेर हुआ।
अब कफस किसको हिदायत हो, यानी जाने वाले से सबको शिकायत हो।

अब पड़ा है वो शख्स हो के बद हवस, कोई तो ऐसा होता जो लेजाता...