नाकाम
माना कि मुस्तक्बिल आशियाना नहीं कोई
मांगा था खुदा से इक छत का साया
उसने बेदिल,बेजान शीशे के महल दे दिये
इस चकाचौंध सी नगरी में कामयाब हूं मैं
पर दिलवालों की दुनिया में नाकाम हूं मैं।।
मांगा था खुदा से इक छत का साया
उसने बेदिल,बेजान शीशे के महल दे दिये
इस चकाचौंध सी नगरी में कामयाब हूं मैं
पर दिलवालों की दुनिया में नाकाम हूं मैं।।
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