कलम
करेला उपर से नीम चढ़ा ,
चांद सा जो रिफ्लेक्ट बना ,
कपोल को भी सस्पेक्ट बना ,
राई से पहाड़ बना ,
निर्मम का हास बना ।
बुत को बात बना ,
बुत को इंसान बना ।
बीते को समक्ष किया ,
भूत को प्रत्यक्ष किया ।
कितनो को ढता दिया ,
कल्पवृक्ष कितनो को बना दिया ।
गबन पे गश्त हुआ ,
स्वयं का निरक्षण हुआ ,
ज्ञान का परीक्षण हुआ ।
समय तो गुजरता गया ,
कलम सदा कालजई रहा ,
अविरल अग्रणी रहा ,
ना कभी समाप्त हुआ ।
इंक अनंत न पास सही ,
नक़्क़ाशी घड़ी के बाद भी रही।।
© Vatika
चांद सा जो रिफ्लेक्ट बना ,
कपोल को भी सस्पेक्ट बना ,
राई से पहाड़ बना ,
निर्मम का हास बना ।
बुत को बात बना ,
बुत को इंसान बना ।
बीते को समक्ष किया ,
भूत को प्रत्यक्ष किया ।
कितनो को ढता दिया ,
कल्पवृक्ष कितनो को बना दिया ।
गबन पे गश्त हुआ ,
स्वयं का निरक्षण हुआ ,
ज्ञान का परीक्षण हुआ ।
समय तो गुजरता गया ,
कलम सदा कालजई रहा ,
अविरल अग्रणी रहा ,
ना कभी समाप्त हुआ ।
इंक अनंत न पास सही ,
नक़्क़ाशी घड़ी के बाद भी रही।।
© Vatika