...

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कलम
करेला उपर से नीम चढ़ा ,
चांद सा जो रिफ्लेक्ट बना ,
कपोल को भी सस्पेक्ट बना ,

राई से पहाड़ बना ,
निर्मम का हास बना ।

बुत को बात बना ,
बुत को इंसान बना ।

बीते को समक्ष किया ,
भूत को प्रत्यक्ष किया ।

कितनो को ढता दिया ,
कल्पवृक्ष कितनो को बना दिया ।

गबन पे गश्त हुआ ,
स्वयं का निरक्षण हुआ ,
ज्ञान का परीक्षण हुआ ।

समय तो गुजरता गया ,
कलम सदा कालजई रहा ,
अविरल अग्रणी रहा ,
ना कभी समाप्त हुआ ।
इंक अनंत न पास सही ,
नक़्क़ाशी घड़ी के बाद भी रही।।


© Vatika