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स्वतंत्रता_प्रयास
#स्वतंत्रता_प्रयास
इस मातृभूमि का अंग हूं जो
तो चलो समर में चलता हूं
ज्यों बलिदानी बलिदान हुए
मैं भी उनमें एक बनता हूं

यों तो साधारण कर्म मेरे
मैं कुनबाओं का वासी था
दो वक़्त की रोटी चाहत थी
और परिवारिक अभिलाषी था

सुनता था जनों से समाचार
बलिदानी वो दुर्लभ विचार
""बाल उमर केही तो थे""
सुन, उबल पड़ते थे लहू लाल,
फिर नर संघरों की बात सुनी
मन मचल मचल सकुचाता था
हे विधना, तू वो पथ बतला
जिसपे चल के रोकुं ये प्रहार ।

हे चंडी! मुझको वो बल दे
मैं तोड़ लाऊँ अम्बर से ढाल
ज्वालामुखी से खिंचूं कृपाण
या सूरज को ही बरसा दूँ
और राख करूँ अरीदल के प्राण ।

फ़िर अवसर एक दिन नाथ दिए
कुछ महापुरुष आए घर को
हर नौजवान तैयार हुआ
मैं भी दल में था सवार हुआ,

जैसे गुरु बिन कोई मार्ग कहाँ,
जैसे बिन वाणी बोली क्या
सच पूछो तो इसी आशंका से
अबतक मैं खुद को रोका था।

वो दिन भी न्योता ले आया
धरती पे मरने मिटने को
बढ़ चढ़ कर फ़िर शृंगार हुआ
मैं सबसे पहले तैयार हुआ
यों माथे पे माटी रगड़ी
भीड़ गया दशानन से जाके
बिन शस्त्रों के ही काट दिया
बांहें कितने ही उखाड़ दिया
फ़िर बलिदानों को याद कर
और देश प्रेम यू विचार कर
मातृभूमि का नारा ले
मैंने फ़िर अंतिम साँस लिया
ऐसे स्वतंत्रता_प्रयास किया









© moonlightZ