...

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हर्फ-ए-उल्फ़त
मुझे अहमक़ कहो, कहो बिस्मिल साकी।
क़ल्ब-ए-माहौल में मुंतशिर आशिकी कहो।
इब्तिदा-ए-इश्क कहो, कहो इंतिहा-ए-ख़ल्वत-गुज़ीनी।
कुछ भी कहो तो साकी कि इंतज़ार-ओ-रज़ा
कहीं दम ना...