...

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सावन का प्यार
देखने का अंदाज़ ही ऐसा था,देख जिन्हें शर्म से नज़रें झुकाई थी।
चटक की आवाज से चूड़ी टूटी थी उसकी,मोड़ी जो उसने उसकी कलाई थी।
मोहब्बत तो थी उसे भी बोहोत, पर पाकर ऐसे वो थोड़ी सकुचाई थी।
खो न दूं इस महबूब को कभी, इस बात से ही घबरायी थी।
आशिक़ राह में मिले बोहोत,किंतु इसे वह महादेव के दर पर आज दिल दे आयी थी।
सावन की हल्की फुंहार में कुछ ऐसी कशिश थी जो खुद को रोक न पाई थी।
प्यार नहीं, प्रसाद था शिव का उसके, मिला ऐसा कि उसकी बाहों में खुद को सौंप आयी थी।

Glory❤️

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