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" बीस दोहे - चाणक्य नीति पर "
मूरख झेलें दुख सदा यही जगत की रीत ।
सही गलत का फैसला करने से हो जीत।।

बुरे वक्त में धन सदा आता अपने काम ।
अपने दुश्मन जब बने ये देता आराम ।।

अपने गिरगिट जब बने आँखें ले वे फेर ।
संचितधन तब मित्र बन करवाए सुखसैर ।।

जहां जरूरी हो करें हम धन का उपयोग ।
साधन उसको मान के करें जरूरी भोग ।।

नहीं दिखावा हम करें धन का कभी सुजान ।
बुद्धिमान करता नहीं गुण का कभी बखान ।।

धन से पद से व्यक्ति की नहीं सफलता जान ।
मरने पर यशगान हो उसे सफल तू मान ।।

मार्ग सत्य का ही हमें मंजिल पर पहुंचाए ।
सत्यमार्ग के पथिक से कौन जीतने पाए ।।

जो जनहित के वास्ते करता बुद्धि प्रयोग ।
उसको सब सिर पे बिठा करते हैं सहयोग।।
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