...

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तुम्हारा आना
कुछ लोगों का जिंदगी में आना
यूँ लगता है मानो
सुबह का खिलता उजास हो
हाँ.. तुम भी हो कुछ ऐसे ही मेरे लिए।

तुम नजरों से जो छूते हो न
मेरा रोम-रोम तरंगित हो उठता है।
तुम्हारा मात्र देख भर लेना
मुझे यूँ प्रफुल्लित करता है
जैसे मेरे शरीर पर
ओस की शीतल-श्वेत कणों ने
अपने नर्म हथेली रख दी हों।

पीत आभा वाला वसन्त
खिल उठता है ज्यों
सूरज की नरम धूप छूकर,
मैं भी हो जाती हूँ वासन्ती सूरजमुखी
तुम्हारे सुनहरे प्रेम में।

ओ मेरे नाविक!!!
मेरे मंद जीवन को धीरे-धीरे गति देते रहना
मैं इस जीवन का ओर-छोर तो न जानती
हाँ लेकिन इतना जानती हूँ
तुम्हारे होने से मेरे पलों को ..बेरंग दिनों को
नन्हीं चिड़िया-सी पांखें लग लग गई हैं।
❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️
© ©सीमा शर्मा 'असीम'