...

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ख़लिश
नाराज़ हूं तुमसे
बहुत नाराज़
जानता हूं......
ना तुम मेरी हो , ना मैं तुम्हारा हूं
लेकिन फिर भी चल पड़ा हूं ना जाने कैसी राह पर
जब भी तुमसे दूर जाने की कोशिश करता हूं
हालात मुझे तुम्हारे और भी करीब ला देती है
बहुत समझाता हूं खुद को
कि ना सोचूं तुम्हारे बारे में
पर ये दिल बहुत परवाह करता है तुम्हारी
वो कहते है ना ......
कि हम हंसते हैं, रोते हैं, नाराज़ होते हैं
और नखरे भी उन्हीं के सामने दिखाते हैं
जो हमारे अपने होते है
लेकिन तुम तो मेरी कुछ भी नहीं लगती हो
तो फिर ऐसा क्यों?......
क्या ये मेरा दिल अब
तुम्हें अपना सब कुछ मान चुका है??