...

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विडंबना और दर्द
हुआ जो भंगुर, सीसे का प्याला,
क्या फिर से जुड़ पाता है,
गुजर गया दुनिया से जो,
क्या कभी लौट के आता है,
टूटे प्याले का, मदिरालय
क्या कोई शोक मनाता है,
तू भी क्यूं उसके गम में
यूं सच्चाई ठुकराता है,
वक्त बिताया इस दुनिया में
बस ख्वाबों तक रह जाता है,
किंतु परंतु करने से
क्या तर्क सिद्ध हो पाता है,
त्याग ह्रदय प्रतिक्षण विलाप अब,
धैर्य खत्म ना होने दे,
साहस का तू हाथ थामले,
कदम को यूं ना डिगने दे,
सांसों में सरगम को भर के
मन को प्रफुल्लित तू कर ले,
ईश्वर है संसार का स्वामी
वही वक्त का रखवाला
ख्वाहिश रख,फिर खूब जतन कर
फल भी मिलेगा मतवाला।
RUPESH K. SHARMA
© @mr.rupeshkumar