ग़ज़ल
छत की फ़सील पर से ये बच्चा उतर गया
दिल से तुम्हारे इश्क़ का नश्शा उतर गया
मेरी तरफ़ चला था जो तिरछी निगाह से
वो तीर मेरे सीने में सीधा उतर गया
आँखों पे उस ने एक दफ़ा हाथ क्या रखे
मुझ को लगा हुआ था जो चश्मा उतर गया
मेरे बग़ैर तू ने गुज़ारी है ज़िन्दगी
कैसे तेरे गले से ये लुक़मा उतर गया
नीयत से डाँटने की ही मैं तो गया था पर
मुस्कान उस की देख के ग़ुस्सा उतर गया
वो आज मुझ को देख के क्या मुस्करा दिए
महफ़िल में एक-एक का चेहरा उतर गया
© Rehan Mirza
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दिल से तुम्हारे इश्क़ का नश्शा उतर गया
मेरी तरफ़ चला था जो तिरछी निगाह से
वो तीर मेरे सीने में सीधा उतर गया
आँखों पे उस ने एक दफ़ा हाथ क्या रखे
मुझ को लगा हुआ था जो चश्मा उतर गया
मेरे बग़ैर तू ने गुज़ारी है ज़िन्दगी
कैसे तेरे गले से ये लुक़मा उतर गया
नीयत से डाँटने की ही मैं तो गया था पर
मुस्कान उस की देख के ग़ुस्सा उतर गया
वो आज मुझ को देख के क्या मुस्करा दिए
महफ़िल में एक-एक का चेहरा उतर गया
© Rehan Mirza
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