हिंदी
*हिंदी पखवाड़े पर हिंदी को प्रस्तुत भाव पुष्प* ..
*ओम ओम अक्षर अक्षर है शब्द शब्द अम्बर है ।।*
लोक चेतना का साधक मैं,
हिंदी मेरा घर है ।
ओम ओम अक्षर अक्षर है ,
शब्द शब्द अम्बर है ।।
संबोधन के चित्र हमारे
वर्ण वर्ण अंकित हैं ।
इन संकेतों के अनुभव में
भाषाएं स्थित हैं ।।
क्या विशुद्ध विज्ञान निहित है
हिंदी में अक्षर के ।
जैसे मेरे भाव खड़े हों
मूर्तमान हो कर के ।।
हिंदी में जीवन व्यंजन है
आत्म चेतना स्वर है ।
ओम ओम अक्षर अक्षर है
शब्द शब्द अम्बर है ।।1।।
प्राणी विविध भाषणों में
जो उच्चारण करते हैं ।
उसे यथा स्थिति लिखने को
हिंदी हम कहते हैं ।।
हिंदी कृत्रिम रूप नहीं है
भाषाओं के कृति का ।
यह अव्यय संस्कृत की बेटी
अवधारणा प्रकृति का ।।
संस्कार उन्नत जीवन यह ,
भाषा से ऊपर है ।
ओम ओम अक्षर अक्षर है
शब्द शब्द अम्बर है ।।2।।
कला कोश की प्रखर वाहिनी
सप्तस्वरा संगीता ।
नव रस नव गति प्रगति पावनी
तुम कल्याणी गीता ।।
छंद तुम्हारे सिखलाते हैं
जीवन में अनुशासन ।
ओज प्रसाद मधुर गुण करते
व्यवहारों को पावन ।।
गीत गीत आबाद तुम्हारे
सामवेद का स्वर है ।
ओम ओम अक्षर अक्षर है
शब्द शब्द अम्बर है।।3।।
आत्म चित्र से जन जन में
हिंदी प्रकाश भरती है ।
आत्म मित्र से यह जीवन का
हर विकास करती है।।
कला ,ज्ञान ,विज्ञान समाहित ,
हिंदी के संबोधन ।
करुणा ,प्रेम,प्रणय ,श्रद्धा सब
हिंदी के अंतर्मन ।।
आज किंतु हिंदी जीवन से
हिंदी को ही डर है ।
ओम ओम अक्षर अक्षर है
शब्द शब्द अम्बर है ।।4।।
@सुजान तिवारी समर्थ
लेखक एवं कवि
सिंगरौली
© Sujan Tiwari Samarth
*ओम ओम अक्षर अक्षर है शब्द शब्द अम्बर है ।।*
लोक चेतना का साधक मैं,
हिंदी मेरा घर है ।
ओम ओम अक्षर अक्षर है ,
शब्द शब्द अम्बर है ।।
संबोधन के चित्र हमारे
वर्ण वर्ण अंकित हैं ।
इन संकेतों के अनुभव में
भाषाएं स्थित हैं ।।
क्या विशुद्ध विज्ञान निहित है
हिंदी में अक्षर के ।
जैसे मेरे भाव खड़े हों
मूर्तमान हो कर के ।।
हिंदी में जीवन व्यंजन है
आत्म चेतना स्वर है ।
ओम ओम अक्षर अक्षर है
शब्द शब्द अम्बर है ।।1।।
प्राणी विविध भाषणों में
जो उच्चारण करते हैं ।
उसे यथा स्थिति लिखने को
हिंदी हम कहते हैं ।।
हिंदी कृत्रिम रूप नहीं है
भाषाओं के कृति का ।
यह अव्यय संस्कृत की बेटी
अवधारणा प्रकृति का ।।
संस्कार उन्नत जीवन यह ,
भाषा से ऊपर है ।
ओम ओम अक्षर अक्षर है
शब्द शब्द अम्बर है ।।2।।
कला कोश की प्रखर वाहिनी
सप्तस्वरा संगीता ।
नव रस नव गति प्रगति पावनी
तुम कल्याणी गीता ।।
छंद तुम्हारे सिखलाते हैं
जीवन में अनुशासन ।
ओज प्रसाद मधुर गुण करते
व्यवहारों को पावन ।।
गीत गीत आबाद तुम्हारे
सामवेद का स्वर है ।
ओम ओम अक्षर अक्षर है
शब्द शब्द अम्बर है।।3।।
आत्म चित्र से जन जन में
हिंदी प्रकाश भरती है ।
आत्म मित्र से यह जीवन का
हर विकास करती है।।
कला ,ज्ञान ,विज्ञान समाहित ,
हिंदी के संबोधन ।
करुणा ,प्रेम,प्रणय ,श्रद्धा सब
हिंदी के अंतर्मन ।।
आज किंतु हिंदी जीवन से
हिंदी को ही डर है ।
ओम ओम अक्षर अक्षर है
शब्द शब्द अम्बर है ।।4।।
@सुजान तिवारी समर्थ
लेखक एवं कवि
सिंगरौली
© Sujan Tiwari Samarth