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अब वो पहली वाली बात नहीं।
अब पहली वाली बात नहीं, अब वो पहली वाली रात नहीं,पहले बचपन में नानी के घर जाते थे और आज के बच्चे मोबाइलों में रह जाते हैं, पहले रक्षाबंधन एक त्योहार के रूप में मंता था आज सिर्फ मतलब के लिए बनता है, पहले दीवाली एक त्योहार था आज दीवाली सिर्फ नाम की रह गई है, धीरे धीरे आने वाले वक़्त में शायद ये त्यौहार ही ना रहे। पहले कुछ दोस्त मिल के खेलते थे आज सब अपने अपने घर बैठे हैं, पहले रिश्तेदार अच्छे लगते थे आज वोही बुरे हो गए, पहले नानी के घर में बैठ के कहानी सुनते थे आज वो कहानी गायब हो गई, सब मोबाइल में व्यस्त हो गए सब अपना बचपन भूल गए, आज किसी बच्चे से पूछो कंचा खेला है, गिल्ली डंडा खेला है नहीं ना आज के बच्चे इंटरनेट के ज़माने के हो गए फिर से हम अपना बचपन भूल गए।
© ketan